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अंतरराष्ट्रीय व्यापार किसे कहते हैं विशेषताएं, कारक, महत्व, लाभ और हानियां,











































vyapar se aap kya samajhte hain



अन्‍तर्राष्‍ट्री्रीय व्यापार किसे कहते हैं / antarrashtriya vyapar kise kahate hain

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से अभिप्राय यह है कि जब दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्‍तुओं और सेवाओं के विनिमय से है । यदि क्रेता और विक्रेता अलग अलग देशों में रहते हो तो उनके बीच (मध्‍य) हुआ क्रय - विक्रय विदेशी व्‍यापार या अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार कहलाता है । 
इस तरह के व्‍यापार में वस्‍तुऍ एक देश की सीमाओं को पार करके दूसरे देशों की सीमा में प्रवेश करती है । जैसे - बांग्‍लादेश तथा भारत के बीच होने वाला व्‍यापार विदेशी व्‍यापार कहलाता है ।     

भारत में विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषता क्या है

भारत में विदेशी व्यापार की विशेषताएं /
भारत में विदेशी व्यापार की किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए

1) भारत के विदेशी व्‍यापार का लगभग 90 प्रतिशत भाग जल मार्ग या समुन्‍द्री मार्ग और शेष बचा हुआ वायु परिवहन एवं सडक परिवहन का योगदान रहता है । 
2) भारत का 50 प्रतिशत विदेशी व्‍यापार  इन देशों के साथ करता है उनका नाम - ब्रिटेन, संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका, तथा जापान आदि। 
3) भारत का अधिकांश विदेशी विदेशी व्‍यापार केवल छ: बंदरगाहो से होता है - कोलकाता, विशाखापट्टनम, कोचीन, मुम्‍बई, काण्‍डला एवं चेन्‍नई ।   
4) निर्यात की जाने वाली वस्‍तुओं में कृषि और औद्योगिक उत्‍पाद एवं दस्‍तकारी हथकरघा तथा कुटीर उद्योग क्षेत्र की भिन्‍न प्रकार की वस्‍तुओं भी शामिल है । वर्तमान में इलेक्‍ट्रानिक्‍स हार्डवेयर एवं साॅफ्ट वेयर के निर्यामें भी वृद्धि हुई है । 
5) भारत देश केआयात में काफी वृद्धि हुई है आयात की जाने वाली वस्‍तुओं में पेट्रोलियम और पेट्रोनियम उत्‍पाद तथा उर्वरक आदि प्रमुख है। भारत में सम्‍पूर्ण आयात का लगभग एक चौथाई भाग खनिज तेल का होता है। 

antarrashtriya vyapar ke labh

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से प्राप्‍त हाेने वाले लाभ - 

1) भौगोलिक एवं प्रादेशिक श्रम विभाजन - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण ही दो राष्‍ट्रों के बीच (मध्‍य) भौगोलिक एवं प्रादेशिक श्रम का विभाजन संभव हो जाता है। जिसके कारण उत्‍पादन में उसे अधिकतम प्रकृति लाभ प्राप्‍त हो । तथा उत्‍पादन में लागत की मात्रा बहुत कम हो। इस प्रकार से दोनों देशों में ऐसी ही वस्‍तुओं के उत्‍पादन करने में विशेषज्ञता प्राप्‍त कर लेते है।  

2) प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग - भी देश केवल उन्‍ही वस्‍तुओं का उत्‍पादन करता है जिनके उत्‍पादन में उसे तुलनात्‍मक से ज्‍यादा लाभ प्राप्‍त हो सके । अत: सभी देश प्राकृतिक संसाधनों का पूरा-पूरा प्रयोग करते है। 

3) उत्‍पादन विधियों में सुधार - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण देश में उद्योगपतियों को विदशों से प्रतियोगिता का सामना करना पडता है । इसलिए हमेंश वैज्ञानिक उत्‍पादन में जो लागत लगती है उसे कम करके उत्‍तम वस्‍तुओं का निर्माण करने का प्रयास करते रहते है ।  
इससे देश की सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था को लाभ प्राप्‍त होता है । जिससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है ।   
 
4) बाजार का विस्‍तार - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार का एक लाभ और यह भी होता है कि राष्‍ट्र के साथ बाजार का विस्‍तार होता है। यदि बाजार राष्‍ट्र की सीमा के अन्‍दर तक ही सीम‍ित रहता है तो मॉग कम होती है  तथा विक्रय कम होती है तबकि विदेशी बाजार होने में मॉग भी व्‍यापक हो जाती है तथा इसका विस्‍तार भी बढ जाता है । 

5) विदेशी विनिमय की प्राप्ति -  वर्तमान में विदेशी विनिमय किसी भी देश की आर्थिक विकास में महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता है । विकासशील राष्‍ट्रों के लिए अति आवश्‍यक होता है । विदेशों से आवश्‍यक सामग्री एवं तकनीकी ज्ञान प्राप्‍त कर सकते है। 

6) कृषि व उद्योगों का विकास-  अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में कृषि व उद्योगो  का विकास सम्‍भव होता है क्‍योंकि एक देश से दूसरे देश में आधुनिक  मशीनों व यन्‍त्रों आदि का आयात करके अपने देश में उद्योग के क्षेत्र में विकास किया जा सकता है ।  

7) एकाधिकारों पर रोक - एकाधिकारी अपनी वस्‍तु को उत्‍पादन करके ज्‍यादा कीमत में बेचकर अधिक मूल्‍य अर्जित करना चाहते है क्‍योंकि एकाधिकार का अभाव होता है। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण इस एकाधिकार पर नियन्‍त्रण लगाया जाता है।  
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अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार की हानियाें का वर्णन कीजिए   

1) कृषि प्रधान राष्‍ट्रों की हानि - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से कृषि  प्रधान राष्‍ट्रों को हानि होती हैं। क्‍योंकि ऐसे देशों को आयात की गई निर्मित वस्‍तुओं के बदले कृषि उत्‍पादन का का निर्यात काना पड़ता है  और कृषि उत्‍पादन में उत्‍पति हास्‍य नियम जल्‍द ही लागू होने के कारण उत्‍पादन व्‍यय में वृद्धि  होती है । जबकि उद्योगों में काफी समय तक उत्‍पादित वृद्धि का नियम के अनुसार उत्‍पादन होता है । और उत्‍पादन की लागत उत्‍पादन की मात्रा बढने में कम होता है । 

2) विदेशी प्रतियोंगिता से हानि -   अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण स्‍वदेशी उद्योगाें को कडी विदेशी प्रतियोगिता का सामना करना पडता है । जिससे कारण नब विकसित उद्योगाें का पतन होता है । जिससे नये उद्योगाें का स्‍थापना नहीं हो पाती है। 

3)राशि पतन -   अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में विकसित देश कभी -कभी पिछडें हुए देशों में उपने माल को बहुत ही कम कीमत में बेचना शुरू कर देते है  और कभी- कभी तो वे अपना माल उत्‍पादन लागत से भी कम मूल्‍य पर बेचते है इस तरह की रीति को राशिपतन भी कहते है   ।

4) प्राकृतिक संसाधनों का हास्‍य - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण ही कच्‍चे माल का आयात निर्यात सम्‍भव हो सका है । देश के प्राकृतिक संसाधनों का तीव्र गति से विदेशो में निर्यात कर दिया जाता है । जैसे भारत के प्रा‍कृतिक स्‍त्राेत मैंगनीज व अभ्रक दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे है । और यहि स्थिति रही तो एक दिन खत्‍म हो जायेगें। 

5) आर्थिक असन्‍तुलन -  अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण कुछ देश दूसरे देशों से इस भॉति शामिल हो जाते है  कि एक देश के आर्थिक असन्‍तुलन का प्रभाव अन्‍य सम्‍बंद्ध  देशों पर भी पडता है ।

6)  अन्‍तर्राष्‍ट्रीय द्वेष - इतिहास इस बात का गवाह है क राजनीतिक क्षेत्र में गलाकाट प्रतियाेगिता आपसी तनाव तथा संंघर्ष अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के कारण उत्‍पन्‍न होते है ।

7) उपभोक्‍ता की आदतो पर बुरा प्रभाव - अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के माध्‍यम से उपभोक्‍ता को अनेक वस्‍तुए सस्‍ता मूल्‍यों पर मिलने लगता है । 


अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं? 

 

1) अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से प्राप्‍त होने वाले लाभ की मात्रा ज्‍यादातर व्‍यापार की शर्तों पर निर्भर करती है । 
2) प्रो. हेरोड के शब्‍दों के अनुसार - दो देशों के मध्‍य मूल्‍यों के अनुपात का अन्‍तर जितना ज्‍यादा होता है अन्‍तर्राष्‍ट्रीय  व्‍यापार से प्राप्‍त होने वाला लाभ उतना ही अधिक होता है। 
3) प्रो. ऑसिंग के अनुसार अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में लाभ की मात्रा बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करती है।    

भारत में आयात की जाने वाली कौन कौन सी वस्तुएं हैं?| 

भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं की सूची 

भारत में आयात को प्रमुख रूप से तीन भाॅगाें में रखा गया है-
1) पूॅजीगत वस्‍तुऍ - इस भाग पर मशीने, धातुऍ, अलौह धातुऍ, एवं परिवहन के सामान आदि शामिल है। 
2) कच्‍चा मॉल - इसमें खनिज तेल, कपास, जूट, तथा रासयनिक वस्‍तुओं का समावेश होता है। 
3) उपभोक्‍ता वस्‍तुऍ - इसमें खाद्यान्‍न विद्युत उपकरण, औषधियॉ, वस्‍त्र, कागज आदि का समावेश होता है । 

भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएं कौन सी है?|

भारत में निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की सूची 


भारत से निर्यात की जाने वाली वस्‍तुओं को चार श्रेणीयों में विभाजित किया जा सकता है- 

1) खाद्यान्‍न समूह या कृ‍षि द्वारा उपज वस्‍तुऍ - इस तरह के श्रेणी में कृषि उत्‍पादित वस्‍तु जैसे - अनाज, चाय, तम्‍बाकू, काफी, काजू, मसाले आदि ।
2) कच्‍चा माल - इस तरह की श्रेणी में खाल, चमडा, उन, रूई, कच्‍चा लोहा, मैगनीज, खनिज पदार्थ आदि शामिल किया जाता है। 
3) निर्मित वस्‍तुए - इसमें जूट का सामान, चमडे़ का सामान, सीमेन्‍ट, खेल का सामान, जूते आदि।
4) इस श्रेणी में मशीने, परिवहन उपकरण, लोहा, इस्‍पात, इंजीनियरिंग वस्‍तु  साफ्टवेयर एवं सिलाई मशीने आदि को शामिल किया गया है ।